Last modified on 7 जनवरी 2014, at 17:30

वापसी / गुलाब सिंह

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:30, 7 जनवरी 2014 का अवतरण ("वापसी / गुलाब सिंह" सुरक्षित कर दिया (‎[edit=sysop] (बेमियादी) ‎[move=sysop] (बेमियादी)))

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

भरी आँखें
थरथराये ओंठ
हिलता रह गया रूमाल!

नहीं फेरी पीठ, चलता रहा-
चलता रहा
लम्बी रेत के उस पार-
पानी, हर किसी ने कहा

पड़ गए छाले
न बीता
यह अनोखा ढाल।

गले लगकर लिपट कर
तुमने कहा था-फूल लाना,
ढल रही अब साँझ
संभव हो चला है मुँह छिपाना,

नदी में नावें
बिछाने लगी होंगी
जाल।

शाल कंधों से हटाना
खोलना बाँहें,
वापसी की यात्रायें
थपकियाँ चाहें,

प्यार की वह-
देह थी
यह प्यार का कंकाल।