सड़कों पर लोगों का ऊँचे स्वर में बात करना भी
लक्षण है
थोड़ी-बहुत स्वतन्त्रता का ।
बहुत ज्यादा स्वतन्त्र नहीं है
पर फिर भी यह बेहतर है
ग़ुलामी की विराट महानता से
उसके पिरामिडों और मीनारों से ।
पर ऊँची आवाज़ में यह बातचीत
पहले से तय हो यदि
नगर-परिषद के कार्यालय से
तय हो सड़कों पर गिटार बजाना
या स्मारक के सामने फूल अर्पित करना
तो यह सब कुछ पर्यटकों के लिए है
इसे स्वतन्त्रता तो कहा नहीं जा सकता ।