Last modified on 25 जनवरी 2014, at 11:01

उभरेगा कभी जो है अभी डूबता चेहरा / रमेश 'कँवल'

Mani Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:01, 25 जनवरी 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश 'कँवल' |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGhaz...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

उभरेगा कभी जो है अभी डूबता चेहरा
कंकर न इसे मारो कि है फूल-सा चेहरा

तनवीर1 मिली हर्फ़े-सियह2 से भी जहां को
कोरा था जो काग़ज़ वो है अब वेद का चेहरा

कुछ धूल भी दरपन पे है लम्हों के सफ़र की
कुछ ग़म की तपिश से भी हुआ सांवला चेहरा

मै पेड़ हूं, दम लेते हैं, सब छांव में मेरी
झुलसे है मगर धूप में तन्हा मेरा चेहरा

अहसास के आंगन में कोर्इ फूल खिला है
आता है बहुत याद 'कंवल’ यार का चेहरा


1 रोशनी, ज्ञान 2. काले अक्षर।