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झूमती हर सुबह की खूं में नही शाम है / रमेश 'कँवल'

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झूमती हर सुबह की खूँ में नहार्इ शाम है
फिर भी सर पर सुबह के ही क़त्ल का इल्जाम है

क्या हुआ गलियों में मेरा इश्क़ जो बदनाम है
दर हक़ीक़त1 इश्क़ रूस्वार्इ2 का ही इक नाम है

फिर सदा3 दी है मेरे माज़ी4 ने मुझको दफ़्अतन5
फिर मेरी सांसो में बरपा6 हश्र7 का कोहराम है

लहर इक मिटते ही आ जाता है लहरों का हजूम
ज़िन्दगी शायद किसी तूफ़ाने-ग़म का नाम है

फिर रहा हूं दर-बदर ज़ख़्मों की चादर ओढ़कर
ये मेरे माहौल ने बख्शा मुझे इन आम है

कितने अश्कों के दिये हमने जलाये ऐ 'कंवल’
उस हंसी के वास्ते जो आज तक गुमनाम है

1. वास्तवमें, 2. बदनामी 3. आवाज, 4. अतीत
5. अकस्मात, 6. उठाहुआ 7. प्रलय।