दर्द की रात ढल चली है
रचनाकार: फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
बात बस से निकल चली है
दिल की हालत सँभल चली है
अब जुनूँ हद से बढ़ चला है
अब तबीअत बहल चली है
अश्क ख़ूँनाब हो चले हैं
ग़म की रंगत बदल चली है
लाख पैग़ाम हो गये हैं
जब सबा इक पल चली है
जाओ, अब सो रहो सितारो
दर्द की रात ढल चली है
जुनूँ=दीवानगी;
अश्क=आँसू;
ख़ूँनाब=लहू के रंग