Last modified on 17 फ़रवरी 2014, at 11:46

आँचल बुनते रह जाओगे / रामावतार त्यागी

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:46, 17 फ़रवरी 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामावतार त्यागी |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मैं तो तोड़ मोड के बंधन
अपने गाँव चला जाऊँगा
तुम आकर्षक सम्बन्धों का,
आँचल बुनते रह जाओगे.

मेला काफी दर्शनीय है
पर मुझको कुछ जमा नहीं है
इन मोहक कागजी खिलौनों में
मेरा मन रमा नहीं है.
मैं तो रंगमंच से अपने
अनुभव गाकर उठ जाऊँगा
लेकिन, तुम बैठे गीतों का
गुँजन सुनते रह जाओगे.

आँसू नहीं फला करते हैं
रोने वाले क्यों रोता है?
जीवन से पहले पीड़ा का
शायद अंत नहीं होता है.
मैं तो किसी सर्द मौसम की
बाँहों में मुरझा जाऊँगा
तुम केवल मेरे फूलों को
गुमसुम चुनते रह जाओगे.

मुझको मोह जोड़ना होगा
केवल जलती चिंगारी से
मुझसे संधि नहीं हो पाती
जीवन की हर लाचारी से.
मैं तो किसी भँवर के कंधे
चढकर पार उतर जाऊँगा,
तट पर बैठे इसी तरह से
तुम सिर धुनते रह जाओगे.