Last modified on 26 फ़रवरी 2014, at 14:10

सनसनीखेज़ हुआ चाहती है / नवीन सी. चतुर्वेदी

Mani Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:10, 26 फ़रवरी 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नवीन सी. चतुर्वेदी }} {{KKCatGhazal}} <poem>सनसन...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

सनसनीखेज़ हुआ चाहती है
तिश्नगी तेज़ हुआ चाहती है

हैरत-अंगेज़ हुआ चाहती है
आह - ज़रखेज़ हुआ चाहती है

अपनी थोड़ी सी धनक दे भी दे
रात रँगरेज़ हुआ चाहती है

आबजू देख तेरे होते हुये
आग - आमेज़ हुआ चाहती है

बस पियाला ही तलबगार नहीं
मय भी लबरेज़ हुआ चाहती है

रौशनी तुझ से भला क्या परहेज़
तू ही परहेज़ हुआ चाहती है

हम फ़क़ीरी के 'इशक' में पागल
जीस्त - पर्वेज़ हुआ चाहती है