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प्राकृतिक संख्या‍एँ / विचिस्लाव कुप्रियानफ़

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यदि एक न होता
तो दो भी नहीं होते
दो के बिना
तीन भी नहीं होते
               (भले ही तीसरा अवांछित होता)
बिना तैंतीसवें के
नहीं होता पैंतालीसवाँ
सैंतीसवें के बिना
नहीं होता इकतालीसवाँ
               (भले कुछ लेखाकार इससे सहमत नहीं)

ईसवी सन् के आरम्भ के बिना
वह नहीं होता
जो रहा ईसवी सन् के पहले तक
हम भी नहीं होते
हमारे समय के बिना
और अब हम पर निर्भर है
जारी रहेगा या नहीं
समय का यह प्राकृतिक क्रम
स्‍वाभाविक भविष्‍य में
या प्रतीक्षा में रखें 'शून्‍य समाधान' को
                   (भले ही कुछ लोग इस बात पर अड़े हैं
                   कि हम पर कुछ भी निर्भर नहीं)