Last modified on 2 मार्च 2014, at 21:04

पीरियॉडिक चेक / नीलाभ

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:04, 2 मार्च 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नीलाभ |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

जब लगातार तीसरे साल 7 अगस्त को मोबाइल पर एस० एम० एस०
आया कि आप से सम्पर्क न हो जाने के कारण सेवाएँ प्रतिबन्धित
की जाती हैं तो अहमद हुसैन ने कहा ऐसी-की-तैसी मोबाइल
कम्पनी की । सालों ने ऊधम जोत रखा है। तीन साल में दो
कम्पनियाँ बदलने पर भी वही ढाक के, समझ गए न क्या...?

सो, वह पहुँचा कम्पनी के शो रूम में --
शीशे और स्टील का अत्याधुनिक गोरखधन्धा
ग्राहकों में आतंक की सृष्टि करता हुआ
भरता हुआ उनमें कमतरी का मध्यवर्गीय एहसास --
वहाँ एक चुस्त, टाईशुदा, अंग्रेज़ीदाँ, चिकना और
मतलब-से-मतलब रखने वाला ग्राहक-सेवी बैठा था
मशीनी निर्विकारता से शिकायतों को निपटाता हुआ,
मछलियों जैसी भावहीन आँखों से निहारता
मोबाइल कम्पनी में आने वाले शिकायतियों के मुखारविन्द

‘सर, यह तो पीरियॉडिक चेक है,’ उसने कहा,
‘आपका प्रीपेड कनेक्शन है । 15 अगस्त के लिए
सरकार प्रीपेड कनेक्शन वालों से उनका फ़ोटो और
पहचान-पत्र माँग रही है। यह रहा फ़ार्म, भरिए और
वहाँ फ़ोटो सहित जमा कर दीजिए ।’

‘लेकिन मैं तो यह सब कनेक्शन लेते वक्त ही
दाख़िल कर चुका था।’

अहमद हुसैन की बात पर ध्यान दिए बग़ैर
उस युवक ने वही राग अलापा ।
इस बार मद्धम में ।

पैंतीस बार ‘सर’ कहने और पंचम तक पहुँचने के बाद
मोबाइल कम्पनी के ग्राहक-सेवी युवक ने अहमद हुसैन से कहा,
‘सर, 15 अगस्त है। आपका मोबाइल प्रीपेड है ।
आप तो जानते हैं न आप कौन हैं ।
सरकार आतंकवादियों पर निगरानी रखने की कोशिश में है ।’

‘लेकिन मोबाइल मेरे पास पिछले तीन साल से है ।
दो कनेक्शन बदल चुका हूँ । हर साल 26 जनवरी और
15 अगस्त के आस-पास यह जानकारी मैं दाख़िल कर चुका हूँ ।
बमय फ़ोटो और पहचान पत्र और आतंकवादी नहीं हूँ ।’

‘ठीक है सर, लेकिन यह आठ अगस्त है ।
अगली 26 जनवरी तक आप आतंकवादी नहीं बन जाएँगे
यह जानने का और कोई ज़रिया मोबाइल कम्पनी के पास नहीं है ।
और न सरकार के पास ।’