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पण्डवानी / बुद्धिनाथ मिश्र

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एक था राजा, एक थी रानी
मेरी तेरी है पण्डवानी ।

राजा राजजात का भेड़ा
रानी थी बेताल पचीसी
राजा की दाढ़ी में तिनका
रानी ख़तरनाक मकड़ी-सी

ऐसे में मत कर नादानी
बाँध के रखियो बोली-बानी ।

राजा था ग़ुलाम रानी का
रानी थी उस्ताद तिरंगी
नाक रगड़वाती थी सबसे
सोचो बस तलवार थी नंगी

परजा बस मूरख अज्ञानी
माँगे उससे दाना-पानी ।

किन्तु आग जंगल की फैली
जिसमें राख हुआ नौमहला
पिघल गया वह भी लपटों में
राजा निरा मोम का पुतला

बंसी बजा न पाया नीरो
रुतबा गया, गयी परधानी ।

आया एक सिंह गिरिवन से
भौंक उठे कुत्ते गलियों में
राजा घुसा सियारों के घर
रानी शामिल छिपकलियों में

लगी सुबकने नकली रानी
जैसे रोए कुतिया कानी ।