Last modified on 11 मार्च 2014, at 11:58

चन्द्रमा / होर्खे लुइस बोर्खेस

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:58, 11 मार्च 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=होर्खे लुइस बोर्खेस |अनुवादक=सरि...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

वह सोना कितना अकेला है.
इन रातों का चाँद वह चाँद नहीं
जिसे देखा आदम ने पहली बार ।
 
लोगों के रतजगों की
लम्बी सदियों ने भर दिया है उसे
पुरातन विलाप से ।
 
देखो,
वह तुम्हारा दर्पण है ।