भूल कर देह गेह की सब सुधा।
माँ रही नेह में सदा माती।
जान को वार कर जिलाती है।
पालती है पिला पिला छाती।
देख कर लाल को किलक हँसते।
लख ललक बार बार ललचाई।
कौन माँ भर गई न प्यारों से।
कौन छाती भला न भर आई।
माँ कलेजे में बही जैसी कि वह।
प्यार की धारा कहाँ वैसी बही।
कौन हित-माती हमें ऐसी मिली।
दूधा से किस की भरी छाती रही।
नौ महीने पेट में, सह साँसतें।
रख जतन से कौन तन-थाती सकी।
मोह में माती हुई माँ के सिवा।
कौन मुँह में दे कभी छाती सकी।
प्यार माँ के समान है किस का।
है कढ़ी धार किस हृदय-तल से।
छातियों मिस हमें दिये किस ने।
दूधा के दो भरे हुए कलसे।
दूधा छाती में भरा, भर बह चला।
आँख बालक और माँ की जब फिरी।
गंगधारा शंभु के शिर से बही।
दूधा की धारा किसी गिरि से गिरी।
एक माँ में कमाल ऐसा है।
वुं+भ को कर दिया कमल जिसने।
रस भरे फल हमें कहाँ न मिले।
फल दिये दूधा से भरे किसने।
किस तरह माँ के कमालों को कहें।
छू उसे हित-पेड़ रहता है हरा।
है पनपता प्यार तन की छाँह में।
दूधा से है छेद छाती का भरा।
देख कर अपने लड़ैते लाल को।
कब नहीं मुखड़ा रहा माँ का खिला।
प्यार से छाती उछलती ही रही।
दूधा छाती में छलकता ही मिला।
कौन बेले पर नहीं बनता हितू।
भाव अलबेले कहाँ ऐसे मिले।
एक माँ के दिल सिवा है कौन दिल।
जाय जो छिला पूत का तलवा छिले।