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पिता / सुधीर सक्सेना

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याद है
बचपन में खाए
पिता के जबर हाथों का तमाचा
ऐसे मारते थे पिता
कि मारे और रोने भी न दें

पिता की मार से
सीख ली रूलाई को गले में गुटकने की कला

शुक्रगुज़ार हूँ पिता
कि ज़िन्दगी में सबसे ज़्यादा काम आई यह कला