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आना तुम कभी / निवेदिता

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गीली आंखों में यादों के कुछ बादल उमड़े हैं
भीगा-भीगा मन याद करता है
शफ्फाक दिन
बसंत की ढेर सारी हरी पत्तियां

दिल का परींदा उड़ जाता है
हंसती आंखों में ख्वाब लिए
सड़कों पर फिरते वे दिन याद है

रातों में मीठी नदियों सा बहना
एक देह का नदी में उतरना
और गुलमोहर सा खिल जाना याद है
धूप का शाखों पर गिरना
किसी किताब से निकलकर शब्दों का
बह जाना

एक भीगी सुबह और अंतहीन विस्मृति
बेचैन चुम्बनों के साथ
तुम्हें विदा करना याद है.