Last modified on 21 अप्रैल 2014, at 16:27

अचार / निरंजन श्रोत्रिय

Gayatri Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:27, 21 अप्रैल 2014 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

अचार की बरनी
जिसके ढक्कन पर कसा हुआ था कपड़ा

ललचाता मन कि
एक फाँक स्वाद भरी
रख लें मुँह में की कोशिश पर
पारा अम्माँ का सातवें आसमान पर
भन्नाती हुई सुनाती सजा फाँसी की
जो अपील के बाद तब्दील हो जाती
कान उमेठ कर चैके से बाहर कर देने में.

आम, गोभी, नींबू, गाजर, मिर्च, अदरक और आँवला
फलते हैं मानो बरनीस्थ होने को
राई, सरसों, तेल, नमक, मिर्च और हींग-सिरके
का वह अभ्यस्त अनुपात
बचाए रखता स्वाद बरनी की तली दिखने तक .

सख्त कायदे-कानून हैं इनके डालने और
महप़फूज़ रखने के
गंदे-संदे, झूठे-सकरे हाथों
और बहू-बेटियों को उन चार दिनों
बरनी न छूने देने से ही
बचा रहता है अम्माँ का
यह अनोखा स्वाद-संसार!

सरल-सहज चीजों का जटिलतम मिश्रण
सब्जी-दाल से भरी थाली के कोने में
रसीली और चटपटी फांक की शक्ल में
परोस दी जाती है घर की विरासत!

चैके में करीने से रखी
ये मौलिक, अप्रकाशित, अप्रसारित कृतियाँ
केवल जायके का बदलाव नहीं
भरोसा है मध्य वर्ग का
कि न हो सब्जी घर में भले ही
आ सकता है कोई भी आधी रात!