Last modified on 22 अप्रैल 2014, at 13:07

भेड़ियाआसन / विपिन चौधरी

Gayatri Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:07, 22 अप्रैल 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विपिन चौधरी |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCa...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

सारे नायक पस्त
सारी नायिकाएं दुखी
सारे मसखरे हैरान
शो-विंडो की सिद्धहस्त गुड़ियाँ
अपनी करामातें भूलने लगीं
अभी इतिहास की जो तेज आंधी आयेगी
तो ये जीवन लहलहा उठेगा
तुम इतिहास को टेढ़ी नजरें दिए रहो
हम इतिहास से प्रेम करेंगे
हम उस जुलाहे को सभा में ले आयेंगे
जिसकी छनी उँगलियों से आज भी अविरल लहू बह रहा है
हम सारी अहिल्याओं को जीवित करायेंगे
सारी सतियों को लीलने को तैयार कुंड में लगी ईंटों को उखाड़ फेंकेंगे
सारे चुगलखोर धोबियों को पीटेंगे
सारी नदियों का खारा पानी ओज लेंगे
बहेलियों के जाल चिंदी-चिंदी कर देंगे
हम धरती पर अपना सीना लगायेंगे
सपनों की तिजोरियां चुरा लेंगे
ज्वालामुखियों से दोस्ती करेंगे
ऊँचे पहाड़ों को करेंगे प्रणाम
जब वर्तमान अपने भेड़िया आसन से हमें डराने को आएगा
तो हम उसे उस लहूखोर तोते की मरोड़ी हुई गर्दन दिखायेंगे
जो बरसों से हमारी आत्माओं का लहू पी कर जिन्दा था
तब हम इतिहास का लंबा पुल बनायेंगे और
वर्तमान और भविष्य की पदचाप सुनेंगे