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जरूरी चीज़ें / विपिन चौधरी

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धावकों के पांवों के उँगलियों के बीच
उगी 'फफूंद'
जरूरी है
जीत जितनी ही

लोकतन्त्र के लिए सफेदपोश 'मसखरे'
जरूरी है

जीवन के लिए
हवा-आग-पानी में बजबजाते 'अणु'

प्रेम के लिये स्नेह में पंगी 'आत्मा'

लोहे का लहू सटकने के लिए जंग की लपलपाती 'जीभ'

जरुरी है बंद अलमारी में जमी 'धूल'
सुरक्षित आस्थाओं के लिये

पसीने की गंध
'देह की पहचान' के लिये

जिस तरह जरूरी है कतरे के लिए जरूरी है 'आंख'

उसी तरह जरूरी है मिटटी की सेहत के लिए 'नमी'

पर अंतिम घड़ी तक यह तय नहीं हो पाया है
कितनी जरूरी हूं 'मैं'
तुम्हारे लिए