Last modified on 22 अप्रैल 2014, at 14:06

लड़की / विपिन चौधरी

Gayatri Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:06, 22 अप्रैल 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विपिन चौधरी |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCa...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

लड़की चीज़ों को इतने करीब से सोचती है
की चीज़े एक-एक कर बाहर का रास्ता देखने
पर मजबूर हो जाती हैं
लड़की देखती है अपनी शुरुआत को
जो साधारण की हद तक साधारण हुआ करती है
अपने बीच को
जो लगभग यंत्रणा है
और अंत
वह जो
आत्मा को देर तक उलीचने का सबब बन चुका है
अब लड़की खुद चीज़ों से बाहर देखने की स्थिति में
आ पहुँची है
बातें करने लगी है गगन की
और जब लड़की गगन की बात करने लगे तो उसकी
फडफडाहट को समझते
देर नहीं लगानी चाहिये