एक समय था
कि प्रतीक्षा करता
कब मुझ पर कविता का हमला हो
एक अस्थिर बिम्ब के पीछे
भागते-भागते हाँफ जाता
और अब मैं
कविताओं को अपने बिल्कुल पास से
निकल जाने देता
वे मुरझा कर मर कर
बेजान हो जातीं
और मैं उधर ध्यान भी नहीं देता
कुछ नहीं करता
एक समय था
कि प्रतीक्षा करता
कब मुझ पर कविता का हमला हो
एक अस्थिर बिम्ब के पीछे
भागते-भागते हाँफ जाता
और अब मैं
कविताओं को अपने बिल्कुल पास से
निकल जाने देता
वे मुरझा कर मर कर
बेजान हो जातीं
और मैं उधर ध्यान भी नहीं देता
कुछ नहीं करता