Last modified on 20 मई 2014, at 14:58

जागिये ब्रजराज कुंवर / सूरदास

Gayatri Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:58, 20 मई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सूरदास |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatPad}} {{KKAn...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

जागिये ब्रजराज कुंवर कमल कोश फूले।
कुमुदिनी जिय सकुच रही, भृंगलता झूले॥१॥
तमचर खग रोर करत, बोलत बन मांहि।
रांभत गऊ मधुर नाद, बच्छन हित धाई॥२॥
विधु मलीन रवि प्रकास गावत व्रजनारी।
’सूर’ श्री गोपाल उठे आनन्द मंगलकारी॥३॥