Last modified on 25 मई 2014, at 15:35

शब्दों से खींचती हूँ साँस / पुष्पिता

Gayatri Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:35, 25 मई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पुष्पिता |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

विदेश-प्रवास में
अँधियारे के मीठे उजालेपन में
चाँदनी, सितारों में
जब चमक चुकी होती है...
चाँद सोता है
जब तुम्हारे सपनों में
अकेलेपन की पिघलती मोमबत्ती की
सुनहरी रोशनी में
कभी शब्द तपते हैं ताप में
और कभी मैं शब्दों के साथ।

अपने बाहर की ही नहीं
भीतर की भी साँस रोककर
शब्दों से खींचती हूँ साँस
मन की उमसती कसक को
पसीजी हथेली में रखती हूँ
शब्द नए गढ़कर
लिखे जाने वाले हों जैसे
ह्रदय की मंजूषा में।

सूरज
हर सुबह
छींटता है नई उत्सव-रश्मियाँ
जैसे वे भी
शब्द-बीज हों
अगले भविष्यार्थ के लिए...।