नौकरी की
पहली कमाई की तरह
हथेली में महसूस होता है
प्रणय का प्रथम-स्पर्श।
चित्त का अन्नप्राशन है प्रेम
अनाज का स्वाद
जैसे जानती है देह
प्रणयानुभूति की भींज से
सिंच उठती है मन-वसुधा
जैसे पहली बार
दर्पण के सामने खड़ा होता है मन
अपने प्रेम के साथ
प्रेम में
एक साथ
छूते और जीते हैं
सारी ऋतुएँ
देह-भीतर
अवतार लेती है नवातुर प्रणय देह
मानव-देह से इतर
बहुत पवित्र
स्पर्श में होता है जहाँ
ईश्वरीय जादू
कि पूरी देह में
जाग उठता है पृथ्वी का वसंत।
अन्तर की अन्तःसलिला से
रिस उठती है
भीतर-ही-भीतर राग-सरिता
और लगता है प्रणय घटित होने से पूर्व
देह सिर्फ तट था रेतीला।