कलाई की आँखें
प्रतीक्षा में हैं
आँखों की चौखट में
विश्वास की अल्पना है।
मथुरा-मंदिर के
पाषाण छत्र पर
अपने दुःख को मौन में साधे हुए
कपोत-युगल समूह
कृष्ण और राधा के प्रणय की
अनन्य रागिनी को
सुनते हैं हवाओं की साँसों में
और गुनते हैं प्रणय की प्राण-शक्ति
जो एकनिष्ठ होकर ही सर्वनिष्ठ है
राधा-भाव की तरह
स्मृति में जीती हूँ कृष्णानुराग
और 'तुम' हो जाती हूँ
तुम्हारी प्रतीक्षा में ….।