Last modified on 26 मई 2014, at 09:26

व्याकुलता के विरुद्ध / पुष्पिता

Gayatri Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:26, 26 मई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पुष्पिता |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मेरी घड़ी में
जागता है तुम्हारा समय
मेरी साँसों में
तुम्हारी साँसें।

अपनी आँखों को
जोड़ दिया है तुम्हारी आँखों से
जी जुड़ाने के लिए।

तुम्हारी महक को
बचा लाई हूँ सामानों में
कि वे स्वप्न बन गए
और कमरे में तुम्हारी पहचान की सुगंध
अकेलेपन की घुटन के विरुद्ध है।

तुम्हारे सामान मेरे सामानों को
अपनी पहचान दे रहे हैं,
तुम्हारी हथेली की तरह।

मेरा प्रेम
धरती के अनोखे
पुष्प-वृक्ष की तरह
खिला है तुम्हारे भीतर

आँखें
अपना चेहरा
देखना चाहती हैं
तुम्हारी आँखों के प्यार में।