Last modified on 26 मई 2014, at 10:35

अनगिनत नदियाँ / पुष्पिता

Gayatri Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:35, 26 मई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पुष्पिता |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

प्रेम के हठ योग में
जाग्रत है
प्रेम की कुंडलिनी।

रंध्र-रंध्र में
सिद्ध है साधना।

पोर-पोर
बना है अमृत-कुंड।

प्रणय-सुषमा
प्रस्फुटित है सुषुम्ना नाड़ी में
कि देह में
प्रवाहित हैं अनगिनत नदियाँ।