चिट्ठी के शब्द
पढ़ने से भ्रूण में बदल जाते हैं
मन के गर्भ में।
वे विश्वास की शक्ल में
बदलने लगते हैं।
शब्दों की देह में
आशाओं की धूप समाने लगती है
और अँधेरे के विरुद्ध
कुछ शब्द
खड़े होकर रात ठेलने लगते हैं।
चिट्ठी के शब्द
पढ़ने से भ्रूण में बदल जाते हैं
मन के गर्भ में।
वे विश्वास की शक्ल में
बदलने लगते हैं।
शब्दों की देह में
आशाओं की धूप समाने लगती है
और अँधेरे के विरुद्ध
कुछ शब्द
खड़े होकर रात ठेलने लगते हैं।