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रास्ते / केशव तिवारी

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जिस गली में कभी
दुनिया के हर रास्ते ख़त्म होते थे
एक दिन उसी गली से
रास्ते खुले भी
जब प्रेम डहरी पर डटा
दरिद्र हो जाए
और मन डाड़ी मार का तराजू
चेहरों पर सिर्फ़ अतीत की
इबारतें रह जाएँ
और वर्तमान ख़ाली सपाट

जमुना में समाती केन का दृश्य
आँखो मे लिए हम
कब तक जी सकते हैं ।

इतना ही सोचकर
होता है सन्तोष
हमारे छोड़े रास्ते सूने न होंगे

जिन घाटियों से हम गुज़रे हैं
उनके उन ख़ूबसूरत मोड़ों पर
रुक कर सुस्ता रहे होंगे लोग ।