हमने साझा कमज़ोरियों पर देर तक बात की.
अपना चिरा हुआ वक्ष लेकर हम आमने सामने बैठे रहे देर तक.
मैंने उसके कठोर ह्दय की शिकायत की
जो मेरे दुःख समझने से इंकार करता आया है
उसकी शिकायत शायद मेरी भाषा को लेकर थी.
बीच में हम अटपटेपन के कारण एक दूसरे की बात समझ नहीं पाते थे.
तो भी मैं कहूंगा बातचीत विद्वेष पर खत्म नहीं हुई हमने शायद सब
कुछ समय पर छोड़ने का निश्चय किया
शायद अफसोस में हाथ मिलाये च् की आवाज़ की.
जब मेरी कविता जाने को उठी
तब मैंने उसके लबादे पर ध्यान दिया
उस पर अलंकारपूर्ण ढंग से कढ़ाई की गई थी
उसमें कीड़ों ने बारीक छेद कर दिये थे
वह जैसे सफ़ेद काग़ज़ के मैदान पर चलकर अंधेरे में खो गई
बीच में मुड़कर जब उसने मुझे देखा तो
मैंने खिड़की से
अपना हरा हाथ हिलाया.