Last modified on 1 जून 2014, at 18:59

पानी / प्रेमशंकर शुक्ल

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:59, 1 जून 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रेमशंकर शुक्ल |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

पानी है तो धरती पर संगीत है :
झील-झरनों-नदियों-समुद्र का,
घूँट का !

पानी है तो बानी है

पदार्थ हैं इसलिए कि पानी है
और गूँगे नहीं हैं रंग

पानी भी जब पानी माँग ले
तो समझो कीच-कालिख की
गिरफ्‍़त में है वक्‍़त

ज़िन्‍दगानी को जो नोच-खाय
तो जानो उसके आँख का पानी
मर गया !

भर गया जो गला
सुन कर चीख़-पुकार
वह पानी है !

पानी जो दौड़-दौड़ कर
पृथ्‍वी का चेहरा
सँवारता रहता है !