कहाँ तलाशें
इन ठूँठों में अमराई ?
लाल-लाल कोंपल-से
रिश्ते रेत हुए
बाबा-से बट-पीपल
खँखर प्रेत हुए
कहाँ तलाशें
दोपहरी में परछाई ?
दबी कहीं रेती में
शायद भोज-कथा
अब न अलावों पर
खुलती छिपी व्यथा
कहाँ तलाशें
अपनापे की गरमाई ?
झुकी नहीं आँगन में
भैया-सी छाया
अब छतनार नीम की
चिरी पड़ी काया
कहाँ तलाशें
कचनारों की तरुणाई ?