Last modified on 11 जून 2014, at 13:13

सोने की चिड़िया / सुलोचना वर्मा

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:13, 11 जून 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुलोचना वर्मा |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

विश्व के मानचित्र पर
आज भी चिन्हित है वह देश
कहलाता था जो कभी विश्व-गुरु
और था समृद्ध हर दृष्टि से
हर लड़का होता था कान्हा उस देश का
और राधा कही जाती थीं लडकियाँ

जब वहाँ हर डाल पर होता था बसेरा
सोने की चिड़ियों का
अक्सर बन जाया करती थीं कुछ नारियाँ
गणिका, नगरवधू या देवदासी
और ठीक उसी समय
पुरुष रहा करता था केवल पुरुष

जहाँ नारी स्त्री से बन जाती थी सती
पुरुष बना रहता था पति
मृत्यु-शैया तक
जहाँ रानियों को मान लेना होता था जौहर
पुरुष बना रहता था शौहर
बहुपत्नीवाले सभ्य समाज में
नहीं थी शिकायत किसी को भी
समाज की इस दोहरी बनावट से
न ही स्त्री को , न ही पुरुष को
और असर था यह ज्ञान का
जो दिया जाता रहा लिंग के आधार पर

आधुनिकता के इस दौर में
सचमुच की जीवित चिड़ियों के साथ
गायब है सोने की चिड़ियाँ डाल पर से
नहीं रोते लोग यहाँ अब लड़की के जन्म पर
उसे तो जन्म लेने ही नहीं देते
और जो ले चुकी है जन्म
करते हैं उनका शोषण; हर प्रकार से
फिर लहराते हैं किसी पेड़ पर परचम
अपने पुरुषत्व का डंके की चोट पर

तरक्की कर ली है हमने हर मायने में
और जारी है हमारा सभ्य होते रहना
इतना सभ्य हो जाएगा
इस समाज का पुरुष निकट भविष्य में
बाँट लेगा पत्नी को भाई-बन्धुओं में
बता देगा इस कृत्य को माँ का परम आदेश
और माँ ? क्या करेगी माँ ?
खींच देगी बहू का घूँघट कुछ ज़्यादा ही लम्बा
कि नहीं करना पड़े सामना
उसकी आँखों में तैरते सवालों का
दर्द का, नफ़रत का
या समझा लेगी ख़ुद को यह कहकर
कि ग़लती कर जाया करते हैं लड़के
या फिर जश्न मना रही होगी
अपनी अजन्मी बेटियों को जन्म नहीं देने का

यह सिलसिला चलता रहेगा तब तक
जब रह जाएगी धरती पर
एक अकेली औरत
ठीक उसी समय आएगा
किसी धर्म का कोई गुरु
जो बाँचेगा ज्ञान यह कहकर
कि बनाया है औरत को उसने अपनी पसली से
और उस औरत का धर्म होगा तय
सभ्यता को आगे बढ़ाना !!!!

इस प्रकार पार कर
असभ्यताओं की सारी सीमाएँ
करेगा मानव प्रवेश पुनः
किसी सभ्यता वाले युग में
जहाँ हर डाल पर फिर होगा बसेरा
सोने की चिड़ियों का ।