Last modified on 16 जून 2014, at 23:19

चित्रे-1 / दिलीप चित्रे

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:19, 16 जून 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दिलीप चित्रे |अनुवादक=तुषार धवल |...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

कुल कथाओं की चरम महानता और अपने पतित झुकावों के बीच
यानि जैसे कप और दिलीप के बीच
भारतीय स्याही चित्रे की ताक़त है

यहीं उसकी जीवन्त कड़ी भी है
उसकी उम्र, मार्ग नहीं, अब छियासठ ;
वह सोचता है समग्र चित्रे कुल पर सब कुछ

उसके व्यक्तिगत उत्थान पतन :
ऐतिहासिक दुर्घटनाएँ, नियति का संकट ;
सब कुछ जो मिट जाता है समय की गूढ़ झपक में

वह थक गया है, वह दिलीप है
सोना चाहता है :
स्वप्न देखता हुआ ना शुरूआत का, ना अन्त का

अपनी हड्डियों को आराम दे कर, होठों पर कोई प्रार्थना नहीं ।
उसकी क़लम शिथिल, स्याही सूखती हुई
उसकी आँख खुलती हुई परम आकाश पर

उस पर दया करो, रे परेशान पूर्वजो,
क्रोधित समकालीनो, विचलित प्रियजनो
दिलीप निवृत्त होना चाहता है अकीर्तित

जहाँ प्रभु ख़ुद अपना अँगूठा चूसते हैं ।