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उषस् (तीन) / नरेश मेहता

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थके गगन में उषा-गान !!

तम की अँधियारी अलकों में
कुंकम की पतली-सी रेख
दिवस-देवता का लहरों के
सिंहासन पर हो अभिषेक
सब दिशि के तोरण-बन्दनवारों पर किरणों की मुसकान !!

प्राची के दिकपाल इन्द्र ने
छिटका सोने का आलोक
विहगों के शिशु-गन्धर्वों के
कण्ठों में फूटे मधु-श्लोक
वसुधा करने लगी मन्त्र से वासन्ती रथ का आह्वान !!

नालपत्र-सी ग्रीवा वाले
हंस-मिथुन के मीठे बोल
सप्तसिन्धु के घिरें मेघ-से
करें उर्वरा दें रस घोल
उतरे कंचन-सी बाली में बरस पड़ें मोती के धान !!

तिमिर-दैत्य के नील-दुर्ग पर
फहराया तुमने केतन
परिपन्थी पर हमें विजय दो
स्वस्थ बने मानव-जीवन
इन्द्र हमारे रक्षक होंगे खेतों-खेतों औ’ खलिहान !!

सुख-यश, श्री बरसाती आओ
व्योमकन्यके ! सरल, नवल
अरुण-अश्व ले जाएँ तुम्हें
उस सोमदेन के राजमहल
नयन रागमय, अधर गीतमय बनें सोम का कर फिर पान !!