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चैत..! / कन्हैया लाल सेठिया

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करी गिदगिदी चैत, फूटगी-
ठूंठां में हरयाळी ।

कूंवळ बणगी कळी, कळी में
फुलड़ा आंख्या खोली,
हरया पानड़ां सागै रळगी
हरयै सुआं री टोळी,

हरी दूब रै भ्यानै भू री
घिरगी डील रूंआळी।
करी गिदगिदी चैत, चेतगी
ठूंठां में हरयाळी।

भर जोबन में कैर, हियै में
अकड़ोड्यां कद मावै ?
खींपां करै किळोळ, फोगला
ऊभा झोला खावै,

बवै पून दिखणादी घालै
घूमर नखरां आळी
करी गिदगिदी चैत, फूटगी
ठूंठां में हरयाळी ।

दिन उणियारै दूघ दही रै
रातां कामणगारी,
फिरै भांवतै सपनैं लारै
मन री मौज कुंआरी,

ईं रूत में रोहीड़ा रूड़ा
जाणै कूंकू घाळी।
करी गिदगिदी चैत, चेतगी
ठूंठा में हरयाळी।