Last modified on 16 जून 2014, at 23:54

दरपण..!! / कन्हैया लाल सेठिया

आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:54, 16 जून 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कन्हैया लाल सेठिया |संग्रह=मींझर ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

ओ दरपण जबरो नैणां रो !

रह लाख भलाईं बण्यो ठण्यो
तूं ई्र में साव उघाड़ो है,
मिसरी सो मीठो बोलै पण
लखणां रो जाबक माड़ो है,

ओ साचो साचो अरथ कवै
झट थारै कूड़ा बैणां रो !

तू पुन रो पळको दे’र दकै
क्यूं मूंडा थारै पापां रो,
पुतळी में भळको पडयां सरै
मन रै कालींदर स्यापां रो,

कोई सै भौदू रो लेसी
भख चिलको कपड़ों गैणां रो !

ओ थारै तन री लंका रो
भेदू साख्यात विभीषण है,
तूं ईं नै कोनी देख सकै
ओ देखै थारा ओगण है,

ओ परतख परचो दे देवै
मिनखां नै बैरयां सैणां रो ।