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सिंझ्या..!! / कन्हैया लाल सेठिया

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बा चाली चिलकारै दिन स्यूं
झट आंथूणूं फळसो खोल।

माथै ऊपर घड़ो चांद रो
आंख्यां में काजळ री रेख,
कानां में दिवलां रा झूमर
तार, हाथां मंहदी देख,

जा पूगी आभै रे पिणघट
रात रंगीली नार-अबोल।

आ लजखाणी कामणगारी
नैण घुल्या जादू रै जोर,
सैन करी सुपनां नै ल्यावो
थे सूतां रा चितड़ा चोर,

सौगन थानैं साच हुया तो
थे तोड़ोला थांरो कोल ।

पून सहेली पिणघट बैठी
रात करै हिवड़ै री बात,
मै दुखियारण जलम बिजोगण
कठै मिलै पिवजी परभात,

आंसूड़ा नै ओस कवै कुण
जाणै म्हारो दरद अमोल,
बा चाली चिलकारै दिन स्यूं
झट आंथूणूं फळसो खोल।