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उदासी-1 / राजेश्वर वशिष्ठ

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रुद्र प्रयाग में बड़े वेग से लुढ़क रहा है जल
चट्टानों की त्रिवली में
किनारों पर काँप रहे हैं पेड़ और घुमावदार सड़कें
किसी पुराने मन्दिर की साक्षी में
अचानक शान्त हो जाती है मन्दाकिनी
मिलते हुए अलकनन्दा से
कुछ देर दोनों रहती हैं मौन
वर्षों बाद मिली स्त्रियों की तरह
चलती हैं साथ-साथ गुनगुनाती बतियाती
बस देवप्रयाग पहुँचती है केवल अलकनन्दा
अपने धूसर जल के साथ

मैं उदास हूँ मन्दाकिनी के लिए

बर्फ़-सा शीतल है भगीरथी का हरा-सा जल
उसने अभी तक सहेज रखी है गंगोत्री की आत्मा
देव प्रयाग में वह अजनबियों की तरह
मिलती है अलकनन्दा से
कुछ दूर साथ साथ बहता है धूसर और हरा रंग

मैं उदास हूँ अलकनंदा के लिए

भगीरथी मुस्कुराती है मुझे देख कर
किसी छरहरी सर्पिणी-सी
काँपता है पतला-सा लौहे का पुल
नदी बह जाती है मैदान की ओर
जहाँ उसे धोने हैं सब के पाप
लोग उसे पुकारते हैं -- गंगा

मैं उदास हूँ भगीरथी के लिए