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बड़ी झील / प्रेमशंकर शुक्ल

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बड़ी झील : पानी को रहना सिखाती हुई
और प्‍यास को जीना

बड़ी झील : कभी नर्मदा के
बहते आलाप को सुनती हुई मगनमन
कभी अपनी चुप्‍पी में अथाह
कभी अपने आवेग में
सम्‍पूर्णतः वाचाल

बड़ी झील : जिसका पानी दिखता है
भोपाल के चेहरे पर खिला-खिला
और रहता है
हिन्‍दी-उर्दू की तरह मिला-जुला

बड़ी झील : मुग्‍ध भाव से कभी भारत भवन की
कला दीर्घाएँ निहारती हुई
कभी संगीत सुरों को करती हुई आत्‍मसात
कभी सुन्‍दर कविता पँक्तियों पर देती हुई दाद
कभी जिरह करती हुई परिसंवाद में
कभी नेपथ्‍य में कलाकार को रटाती हुई सम्वाद

कभी लोरी सुनाती हुई
कभी चाँदनी से बतियाती हुई
कभी अपने घाटों पर रहल में रख
बाँचती हुई दिन और रात की पोथी
कभी आकाश-गंगा के साथ दूरभाष पर मशगूल
कभी परखती हुई कि किस बदली में पानी है
और कौन है छूँछ

बड़ी झील : समुद्र की बेटी
अपने पिता की तरह जिसका चेहरा-मोहरा
अपनी दीर्घायु में भोपाल को पानीदार बनाती हुई
दो पहाड़ी जबड़ों के बीच (फैली) जुबान की तरह
मुलायमियत व्‍यवहार के लिए वक्‍़त को समझाती हुई

बड़ी झील :
आसमान को पानी पहनाती हुई
हवा को नहलाती हुई
धरती के लिए गाती हुई जलगीत

बड़ी झील : आसपास के खेतों में लहलहाती हुई
पकी फ़सलों के साथ गाती हुई राग बसन्‍त
किसानी सहजता के साथ गोबर लिए आँगन में बैठ
गाँव-खेड़ों को ढाढ़स बँधाती हुई
गाय-गोरू की प्‍यास के लिए
घूँट बन जाती हुई
मेहमान परिन्‍दों की करती हुई आवभगत

बड़ी झील : कभी सायकिल और गाड़ियों के पंचर
ठीक होने के लिए मैकेनिक की दूकान की तगाड़ी में हलकती हुई
सुबह-शाम नल की पगडण्‍डियों से शहर के
घर-घर में दौड़ती हुई

बड़ी झील : पूछती हुई जलठाउँ की कुशलक्षेम
वन विहार के नीलगाय की आँख में लहराती हुई
चिडि़यों की प्‍यास के लिए बूँद बन जाती हुई
महात्‍मा शीतलदास की बगिया में हो जाती हुई बनारस का गंगा-घाट
कहावत में ‘तालन में भोपाल ताल' बन
ज़ुबान पर चढ़ जाती हुई

बड़ी झील : कभी कन्‍याकुमारी के सनसेट से
अपना रिश्‍ता जतलाती हुई
कभी कथा का सरोवर हो जाती हुई
जहाँ सूर्य हर दोपहर पानी पीने उतरता है

बड़ी झील :
भोपाल की ख़ूबसूरत संस्‍कृति का नाम है
जो अपने अदब के साथ
दुनिया की हर सुन्‍दर चीज़ से मुखातिब है !