Last modified on 30 जून 2014, at 04:35

सन्‍त हिरदाराम / प्रेमशंकर शुक्ल

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:35, 30 जून 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रेमशंकर शुक्ल |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

तुम्‍हारे बैरागढ़ी छोर पर
सन्त हिरदाराम की एक पावन कुटिया है
बड़ी झील !

यह सन्त सादगी और मानवीय करुणा का अवतार है
जीव-सेवा और प्रेम जिसकी दिनचर्या है
आज के बाज़ारू वक्‍़त में ऐसे सन्त का होना
ठगने-लूटने की प्रवृत्त्‍ाि का सच्‍चा निषेध है

कुछ दिनों पहले अपने भौतिक शरीर से
जा चुका है यह सन्‍त
पर उसके सुयश और संकल्‍प का
आज भी लोगों की आत्‍मा में अँजोर है

तुमने तो देखा है उस सन्त का सत्‍कर्म बड़ी झील !
उस सन्‍त की आँखें तुम्‍हें भी तो निहारती थीं
बहुत मान से