कविता ;
भारत री मतदाता !
जकी
प्रगतिवाद
छायावाद
जनावाद-वाद-वाद-वाद
री अळवाद मांय फस्योड़ी
एक-एक पांवड़ो भरै
पण घुट-घुट मरै ।
बापड़ी सूकणै
पड़ रे‘यी है ।
कुता‘ई नी खावै
कविता तांई
इस्सी खरी रंध रै’यी है।
कविता ;
भारत री मतदाता !
जकी
प्रगतिवाद
छायावाद
जनावाद-वाद-वाद-वाद
री अळवाद मांय फस्योड़ी
एक-एक पांवड़ो भरै
पण घुट-घुट मरै ।
बापड़ी सूकणै
पड़ रे‘यी है ।
कुता‘ई नी खावै
कविता तांई
इस्सी खरी रंध रै’यी है।