Last modified on 2 जुलाई 2014, at 18:19

एक बेर अपनहि सऽ मांगि / मैथिली लोकगीत

Mani Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:19, 2 जुलाई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |भाषा=मैथिली |रचनाकार=अज्ञात |संग्रह= बिय...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मैथिली लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

एक बेर अपनहि सऽ मांगि किछु लीअ हे ललन
मनसँ किए नहि जेमइ छी, से हमहूँ जनै छी
व्यंजन एको टा ने बनल बुझाइ हे ललन
एक बेर अपनहि सँ मांगि किछु खाउ हे ललन
अयोध्या थिक राजधानी से तऽ सभ जानी
मिथिला पटुआक झोर हम की दीअ हे ललन
बनल अनोन सनोन सभटा बुझब अपन
हिय किछु नहि राखब ह ललन
निरधन घर ससुरारि, किये लए करब पुछारि
सारि सरहोजिक स्नेह हियमे राखब हे ललन
एक बेर अपनहि सऽ मांगि किछु लीअ हे ललन