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पच्चीस / प्रमोद कुमार शर्मा

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ध्यानमगन है सबद
देखै है सातूं गगन
-होÓर मगन।
नित रो ई गीत गावै है
कदै चांद
कदै सूरज नैं
भाखा रै आंगणै बुलावै है
सिळगावै है
-अगन!
देखै है सातूं गगन।