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अड़ताळीस / प्रमोद कुमार शर्मा

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लुगायां जागै स्हैर मांय
अर करै ब्रस उंतावळी-उंतावळी
जावणो है पार्क बांनै
लगावणा है चक्कर फूलां रा दो-चार
-जद जाÓर
बै तरोताजा हुवै

कविता भी इणी ढाळ दिनुगै आंख खोलै
जे सबद छाजा हुवै।