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मुर्गियाँ / देवेन्द्र सैफ़ी

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हमारा पहला मालिक
हमें 'कुड़-कुड़' नहीं करने देता था
जब उसका दिल करता
हमें मार कर खा जाता था

नया मालिक
हमें दड़बे में रखेगा
हमारी 'कुड़-कुड़' पर
पाबन्दी नहीं लगायेगा
रोज़ हमारे अंडे लेकर जायेगा
पर हमें नहीं खायेगा

हम नाचती हैं
ऐसे मालिक के स्वागत में
हम नये युग की
समझदार मुर्गियाँ हैं।