कांबळ है सबद
रठ मांय ठरतै फकीर रो
-धीर रो
जको धीजै साथै स्रिस्टी रै गिरभ मांय गळै
पण बीं री सुरता मांय सुपना सिरजण रा ढळै
फिकर कद करै बो,
- काया लीर-लीर रो
भाखा साचो घर है
जनमां सूं
-कबीर रो।
(स्व. कवि कुँ चंद्रसिंह बिरकाळी नैं, जकां अेक बंतळ में कैयो कै म्हैं तो आभै मांय दो कोठा बणाया है- अेक 'लू' अर दूजो 'बादळी'।)