लुगायां जागै स्हैर मांय
अर करै ब्रस उंतावळी-उंतावळी
जावणो है पार्क बांनै
लगावणा है चक्कर फूलां रा दो-चार
-जद जाÓर
बै तरोताजा हुवै
कविता भी इणी ढाळ दिनुगै आंख खोलै
जे सबद छाजा हुवै।
लुगायां जागै स्हैर मांय
अर करै ब्रस उंतावळी-उंतावळी
जावणो है पार्क बांनै
लगावणा है चक्कर फूलां रा दो-चार
-जद जाÓर
बै तरोताजा हुवै
कविता भी इणी ढाळ दिनुगै आंख खोलै
जे सबद छाजा हुवै।