Last modified on 4 जुलाई 2014, at 07:10

चौरासी / प्रमोद कुमार शर्मा

आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:10, 4 जुलाई 2014 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

गळी-गळी थारो नांव
-गांव
रातो-मातो है थारी लीला सूं
पछै भी प्रेम व्हीर हूग्यो कबीलां सूं

सबद :
बगै है सुन्नो
     -घुन्नो
जाणै अेकलो बगै कोई रिंधरोही में
के कमी रैयगी सोचूं म्हारै लोही में।