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पृथ्वी-आकाश / त्रिलोचन

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पवन

शाम बीतने पर

बँसवारी में

छिप कर आता है

रुक-रुक कर

बाँसुरी बजाता है


नीम के फूलों की

हरी-हरी सुगन्ध पिए

रात

मौन रहती है

बाँसुरी की तान सुना करती है


तारे चुपचाप देखा करते हैं

पृथ्वी को

राहें उदास देखती हैं

आकाश को ।