पवन
शाम बीतने पर
बँसवारी में
छिप कर आता है
रुक-रुक कर
बाँसुरी बजाता है
नीम के फूलों की
हरी-हरी सुगन्ध पिए
रात
मौन रहती है
बाँसुरी की तान सुना करती है
तारे चुपचाप देखा करते हैं
पृथ्वी को
राहें उदास देखती हैं
आकाश को ।
पवन
शाम बीतने पर
बँसवारी में
छिप कर आता है
रुक-रुक कर
बाँसुरी बजाता है
नीम के फूलों की
हरी-हरी सुगन्ध पिए
रात
मौन रहती है
बाँसुरी की तान सुना करती है
तारे चुपचाप देखा करते हैं
पृथ्वी को
राहें उदास देखती हैं
आकाश को ।