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बूँदन-बूँदन / प्रेमशंकर शुक्ल

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बूँदन-बूँदन
झरे है बदरवा
हँसि-हँसि भीजति
झील रे !

पानी गावत राग मल्‍हरवा
मन-मीन पिअत
रस खींचि रे !

झूला-कजरी
गाएँ सखियाँ
लहरें नाचत झूमि रे !

घाट-घाट में
मेला लागत
जा ते
सावन से
अति प्रीति रे !

बूँदन-बूँदन
झरे है बदरवा
हँसि-हँसि भीजति
झील रे !