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जंगलराज / बुद्धिनाथ मिश्र

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घटता जाए जंगल
बढ़ता जाए जंगलराज
और हाथ पर हाथ धरे
बैठा है सभ्य समाज ।

क्या सोचा था और
हुआ क्या, क्या से क्या निकला
फूलों जैसा लोकतन्त्र था,
काँटों में बदला ।
सोमनाथ से चली अहिंसा
पहुँची होटल ताज ।

कहाँ गये वे अश्वारोही
राजा और वज़ीर
धुँधली पड़ी सभी तेजस्वी
पुरुषों की तस्वीर
खेतों पर कब्ज़ा मॉलों का
उपजे कहाँ अनाज ?

क्या भाषा, क्या संस्कृति
अवगुणता का हुआ विकास
पब के बाहर पावन तुलसी --
पीपल हुए उदास ।
कड़वी लगे शहद, मीठी
पत्तियाँ नीम की आज !